कलम का दर्द तुम्हें आभास है क्या?
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कलम का दर्द तुम्हें आभास है क्या? |
कलम का दर्द तुम्हें आभास है क्या?
यहाँ अँधेरा है वहां प्रकाश है क्या?
तेरे दीदार को वर्षों का इंतजार सही।
मगर जब आना तो बताना इकरार है क्या?
कलम का दर्द........
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खुद ही रुलाते हो, सताते हो, मानते हो मुझे।
कसमें फिर साथ निभाने का खिलाते हो मुझे।
अभी जब तेरी तलब है तो रुखसत हुए जाते हो।
मेरा घर कोई व्यस्त चौराहे का मज़ार है क्या?
कलम का दर्द........
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मैं गर तन्हा था, तन्हा ही सही, इतना तन्हा तो न था।
कोई अपना तो न था, कोई पराया तो न था।
थामके हाथ फिर राहें नहीं देखा करते।
बिछी है फूल या राहों में कांटे हजार है क्या।
कलम का दर्द........
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शहर के लोग तुम्हें पूछेंगे सवालात कल।
कौन रखता होगा मेरा ख़यालात अब।
ये बेरुखी है कैसा, ये हालात है क्या?
ये किस बात का गम है, ये इंकार है क्या?
कलम का दर्द........
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इश्क़ नाम है डूब जाने का, आँखों के समंदर में।
तुमने देखा हीं कहाँ क्या रंग है, गहराई है क्या?
मैं बनु शाम का सूरज, तुम छुपा लो मुझे सागर की तरह।
बस तुम रहो, मैं रहूं, फिर दुनियां की दरकार है क्या?
कलम का दर्द........
कलम का दर्द तुम्हें आभास है क्या?
Kya baat hai...kya baat hai
ReplyDeleteKeep reading......
DeleteWow beautiful lines if you compare to our life and beloved.
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