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Antarman ki Talash |
किस गम में अंतर्ध्यान है?
किस बात से हैरान है?
अंतर्मन तलाश रहा क्या?
खुद ही तू भगवान है।
खोया क्या और पाया क्या है?
दूर गया क्या, आया क्या है?
ढलती जाए शाम का सूरज,
धुप नहीं फिर छाया क्या है?
दिल पर बढ़ता बोझ ये कैसा?
किसने है रस्ते को रोका?
क्यों निर्विघ्न नहीं चलता है,
खाया है किससे ये धोखा?
सागर में लहरें है जितनी,
द्वन्द छिपा है मन में उतनी।
इंसा-इंसा खुदा-खुदा है,
सोच-सोच है अपनी-अपनी।
बोते हो क्यों शूल चमन में?
क्या मिलता है क्रूर दमन में?
क्षणभंगुर संसार से चलके,
मिलना है फिर दूर गगन में।
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nice
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